महिलाओं की प्रजनन क्षमता और गर्भावस्था पर डायबिटीज का प्रभाव

डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर अग्न्याशय द्वारा बनाए गए इंसुलिन की मदद से, शर्करा और स्टार्च को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाता। जब ये शर्करा टूट नहीं पाती और कोशिकाओं द्वारा अवशोषित नहीं होती तो ये रक्त में ही रह जाती है जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। डायबिटीज को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है: टाइप 1 टाइप 2 और गर्भकालीन डायबिटीज। डॉ. क्षितिज मुरडिया, सीईओ और सह-संस्थापक इंदिरा आईवीएफ के अनुसार, टाइप 1 डायबिटीज में अग्न्याशय बहुत कम या बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बनाता जिससे शरीर रक्त शर्करा का उपयोग ऊर्जा के रूप में नहीं कर पाता। इसे नियमित इंसुलिन इंजेक्शन के जरिए नियंत्रित करना पड़ता है। टाइप 2 डायबिटीज में शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधक हो जाती हैं जिससे शरीर मौजूद इंसुलिन का उपयोग कर रक्त शर्करा को ऊर्जा में नहीं बदल पाता। इसे स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन कई बार इसे दवाओं से भी प्रबंधित करना पड़ता है जो इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाती हैं। टाइप 2 डायबिटीज टाइप 1 की तुलना में अधिक सामान्य है। गर्भकालीन डायबिटीज उन महिलाओं में होता है जिन्हें गर्भावस्था से पहले डायबिटीज नहीं था किन्तु गर्भावस्था के दौरान कुछ कारणवश डायबिटीज हो जाता है। इसे संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से प्रबंधित किया जा सकता है लेकिन कुछ मामलों में इंसुलिन की जरूरत पड़ सकती है। आमतौर पर यह डायबिटीज बच्चे के जन्म के बाद समाप्त हो जाता है लेकिन यदि ऐसा न हो तो इसे टाइप 2 डायबिटीज माना जाता है। अब जानते हैं कि डायबिटीज का महिलाओं की प्रजनन क्षमता और गर्भावस्था पर क्या प्रभाव हो सकता है। टाइप 1 डायबिटीज का प्रभाव टाइप 1 डायबिटीज से प्रभावित महिलाओं की प्रजनन अवधि सामान्य महिलाओं की तुलना में छोटी हो जाती है। यह मासिक धर्म की शुरुआत में देरी और रजोनिवृत्ति को जल्दी ला सकता है। इसके कारण रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है, जिससे अंडाशय की उम्र तेजी से बढ़ती है। टाइप 1 डायबिटीज महिलाओं में प्राकृतिक गर्भधारण के मौके को कम करता है और गर्भपात तथा मृत शिशु के जन्म का खतरा बढ़ा सकता है। टाइप 2 डायबिटीज का प्रभाव टाइप 2 डायबिटीज के कारण शरीर में इंसुलिन का अधिक मात्रा में होना और उसका उपयोग न हो पाना महिला हार्मोन में असंतुलन पैदा कर सकता है। इससे महिलाओं में एंड्रोजन का स्तर बढ़ जाता है जिससे पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम जैसी स्थिति उत्पन्न होती है जो अंडोत्सर्जन (ओवुलेशन को प्रभावित करती है और गर्भधारण की संभावना को कम कर देती है। टाइप 1 और टाइप 2 दोनों डायबिटीज से मासिक धर्म में अनियमितता, मासिक धर्म का आंशिक या पूरी तरह बंद होना हो सकता है जिससे गर्भधारण कठिन हो जाता है। इसके अलावा, डायबिटीज मोटापा भी बढ़ा सकता है जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है। डायबिटीज से महिला और पुरुष दोनों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। कुछ समस्याओं का समाधान जीवनशैली में बदलाव और दवाओं से हो सकता है जबकि कुछ के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन जैसी सहायक प्रजनन तकनीकों का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए डायबिटीज का नियंत्रण न केवल हमारे अंगों के लिए बल्कि प्रजनन स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। परिवार नियोजन कर रहे दंपत्तियों के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी भी स्वास्थ्य समस्या की सही पहचान और प्रबंधन करें, ताकि स्वस्थ जीवन की नींव रखी जा सके। Indira IVF DR CHITIJ MURDIYA

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