भारत में दमा का बोझ कम करने के लिए जागरूकता जरुरी: डा. बीपी सिंह
ळाारत मे तीन करोड से अधिक लोग अस्थता से प्रभावित है: डा.एस निरंजन
लखनऊ। दुनिया भर में अस्थमा से 262 मिलियन लोग प्रभावित हैं इसे देखते हुए इस वर्ष के वल्र्ड अस्थमा डे की थीम अस्थमा केयर फ ॉर ऑल दमा की सर्वसुलभ देखभाल रखी है। इसका उददेश्य गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल के संसाधनों की बेहतर पहुंच के माध्यम से प्रभावकारी रोग प्रबंधन को बढ़ावा देना है। इस वर्ष की थीम भारत में दमा की वर्तमान स्थिति को मजबूती से प्रस्तुत करती है। इस रोग से देश में 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित किए जाने की आशंका है, इनमें से ज्यादातर की पहचान नहीं हो पाती या फि र उपचार नहीं हो पाता। यह जानकारी देते हुए डॉ बीपी सिंह रेस्पिरेटरी क्रिटिकल केयर एंड स्पेशलिस्ट फ ॉर स्लीप मेडिसिन लखनऊ ने कहा भारत में दमा सामाजिक कलंक गलत धारणाओं और झूठी बातों का शिकार है। 23 प्रतिशत रोगी ही अपनी अवस्था को इसके वास्तविक नाम से पुकारते हैं। अपनी स्थिति के बारे में बताने से बचने की इस प्रवृत्ति के कारण देश में इस रोग की पहचान बहुत कम संख्या में हो पाती है। गंभीर दमा के 70 प्रतिशत मामले चिकित्सीय रूप से बिना निदान के रह जाते हैं इन चुनौतियों के कारण रोगियों के लिए समय पर चिकित्साल सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए वे शुरुआत में अपनी स्थिति पर काबू नहीं कर पाते हैं। अस्थकमा जैसे पुराने श्वसन संबंधी रोगों के दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए जल्दी पहचान और हस्ततक्षेप महत्वपूर्ण हैं और रोगी के परिणामों में सुधार में मदद करने के लिए इन चुनौतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। डॉ एस निरंजन सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ लखनऊ ने कहा इन्हेलेशन थेरेपी अस्थमा के प्रबंधन की मुख्य बुनियाद है फि र भी भारत में इनहेलर से सम्बंधित सामाजिक कलंक ने इस रोग के कुप्रबंधन को और बढ़ा दिया है।
यह विशेष रूप से बच्चों में मामले में ज्यादा प्रबल है जहाँ पेरेंट्स अक्सर रोग को छिपा जाते हैं और इस प्रकार जब तक लक्षण बिगड़ नहीं जाते तब तक उपचार से बचते या इसे टालते रहते हैं। असल में, डॉक्टर द्वारा डायग्नोकस किये गए रोगियों में इन्हेलेशन थेरेपी का प्रयोग 9% से भी कम है।5 उपचार का खर्च, स्वास्थ्य सेवा की खराब सुलभता, और अपर्याप्त संसाधनों तथा चेतावनी के संकेत की पहचान में मदद के लिए उचित मार्गदर्शन तथा उचित उपकरण तकनीक की कमी के कारण ये मौजूदा चुनौतियाँ और ज्यादा बड़ी हो रही हैं।4 भारत में इन चुनौतियों से निपटने के लिए दमा और इसके अनुशंसित उपचारों दोनों के लिए भारत के नजरिये में महत्वपूर्ण बदलाव आवश्यक है।”
रोगियों को पर्याप्त सशक्तिकरण और लगातार समर्थन प्रदान करने से दमा को लेकर नजरिये और व्यवहार में सकारात्मकक बदलाव आ सकता है। सिप्ला का #BerokZindagi कैंपेन जैसी सार्वजनिक और रोगी जागरूकता पहलें महत्वपूर्ण मंच हैं जो सामाजिक बातचीत के माध्यम से आम जनता को शामिल करता है और जानकारी-से पूर्ण बातचीत के माध्यम से गलत जानकारियों को दूर करता है।
लेकिन यह तभी संभव होगा, जब जागरूकता के प्रयासों को एक ऐसे इकोसिस्टम द्वारा पर्याप्त रूप से सहयोग दिया जाए जो सिप्ला के ब्रीदफ्री प्रोग्राम जैसे हेल्थकेयर सपोर्ट की बेहतर सुलभता को आसान बनाता है। जाँच, परामर्श और उपचार के पालन के क्षेत्रों में रोगी की पूरी यात्रा को शामिल करने वाले इस तरह के कार्यक्रम रोगियों को अपने फेफड़े की सेहत बेहतर रूप से संभालने में मदद के लिए महत्वपूर्ण हैं।
Dr B P singh
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