लाकडाउन के बाद कैसा होगा भारत
हुजैफ़़ा
सड़को पर प्रवासी मजदूरों के काफिले, सुनसान सड़के, सड़को पर हूटर लगी पुलिस की गाडिय़ां, कुत्तों के झुंट शायद देश की एक वायरस से बर्दबादी की दास्ता बयां कर रहे है। हर तरफ लोगों को इस लाकडाउन में फंसे होने की भयावह तस्वीर, भूख से तड़पते परिवार, रोड एक्सीडेंट में सौकडों की मौत, प्रवास में बच्चों का जन्म और पैदल चलने वाले लोगों की दर्द भरी दास्ता जो हर एक के दिलोदिमाग पर छायी है। इसका दर्द लाकडाउन समाप्त होने के बाद भी शायद ही खत्म हो। कोविड-१९ से लड़ाई हमारा देश अपने सीमित संसाधनों से लड रहा है। कोरोना वह महामारी है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। इससे बचाव के लिये पूरा विश्व लड़ रहा और परास्त हो रहा है। ऐसे में भारत की जंग किसी मायने में कम नहीं है। हर तरफ हाहाकार, भूखमरी, पलायन, बेरोजगारी, मंदी, उन्माद आदि के कारण लोग भयभीत है। इस बीमारी का अभी का कोई इलाज न होने के कारण भी लोग परेशान और भयभीत है। कोविड-१९ का अभी तक शायद बचाव ही इलाज है, इसीलिये सरकार इसे गंभीरता से ले रही है। इस लाकडाउन के बाद का ख्याल आते ही मन सिहर उठता है। हर तरफ बेरोजगारी, उद्योग धंधों का बंद होना, नौकरियों का न होना, कुटीर उद्योगों के साथ बड़े उद्योगा का भी नष्टï होना, सभी प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों की छटनी, इस लाकडाउन में हजारों लोग जो अपनी जान गवां चुके होगे उनके परिजनों का दर्द, अनाथों का दर्द आदि मुददों को लेकर भारत को एक बार फिर से नयी शुरुआत करनी होगी।
शायद इसी का नाम जिन्दगी है-अपना सब कुछ हार कर सर पर गठरी लिये हजारों किलोमीटर अपने परिवार संग पैदल ही घर वापसी का साहस जुटाए लोग इस भीषण गर्मी मे चले जा रहे है। अपनों से मिलने की आस में उसे अपने पैरों के छाले और दर्द का एहसान नहीं होता है। जहां जो कुछ मिला खाया नहीं तो बिना खाये ही अपने रास्ते पर चलना करोड़ो लोगों की घर वापसी का मकसद हो गया है। हां इस दर्द भरे सफर में कुछ अपनी जिन्दगी की जंग भी हार रहे है, लेकिन इनके हौसलों के आगे शायद रास्तें में मिलने वाली परेशानियां भी बौनी साबित हो रही है। सरकारी उपेक्षा, सीमाओं पर उपेक्षा, पुलिस के डंडे, कोरोना का डर, जेब में पैसे न होना आदि परेशानियों से पार पाते इन प्रवासी श्रमिकों का दर्द देखा नही जाता है। रास्तें में कुछ हमदर्द इन्हें सहायता जरुर करते है, ताकि यह अपने घरों तक पहुंंच सके।
लाकडाउन के बाद जब परिस्थितियां सामान्य हो जायेगी, लोग अपने कारोबार को फिर से शुरु करना चाहेगे तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या, पैसे और लेबर की होगी। वहीं लेबर जिसे लाकडाउन में कारोबारियों ने इतना उपेक्षित किया की वह अपना सब कुछ उस शहर राज्य को छोडकर पैदल ही अपने गांव, अपनों के पास टोलियां बनाकर निकल पड़ा। जिन प्रवासी मजदूरों को व्यापारी जगत एक माह का भोजन भी न दे पाया जिसने उनके कारोबार को इतनी ऊचांइयों तक पहुंचाया, अब वह इन मजदूरों के बिना चाह कर भी पहले जैसा न तो उत्पादन कर पायेगे न तो उस माल के लिये बाजार तलाश पायेगे। इस लाकडाउन के बाद हजारो कारोबारी कर्ज में डूबक र अपने सब कुछ गवां देगें। हजारों कारोबी ऐसे है जिन्होने अपने मजदूरों का करोडों रुपये का वेतन यह कह कर नहीं दिया की काम बंद है, उन कारोबारियों को इन बेसहारों की हाय के साथ अपना करोबार शुरु करने में दोबारा लालेलग जायेगें। इसका एक दूसरा भयावाह चेहरा महंगाई के रुप में लोगों को झेलना होगा।
सड़को पर प्रवासी मजदूरों के काफिले, सुनसान सड़के, सड़को पर हूटर लगी पुलिस की गाडिय़ां, कुत्तों के झुंट शायद देश की एक वायरस से बर्दबादी की दास्ता बयां कर रहे है। हर तरफ लोगों को इस लाकडाउन में फंसे होने की भयावह तस्वीर, भूख से तड़पते परिवार, रोड एक्सीडेंट में सौकडों की मौत, प्रवास में बच्चों का जन्म और पैदल चलने वाले लोगों की दर्द भरी दास्ता जो हर एक के दिलोदिमाग पर छायी है। इसका दर्द लाकडाउन समाप्त होने के बाद भी शायद ही खत्म हो। कोविड-१९ से लड़ाई हमारा देश अपने सीमित संसाधनों से लड रहा है। कोरोना वह महामारी है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। इससे बचाव के लिये पूरा विश्व लड़ रहा और परास्त हो रहा है। ऐसे में भारत की जंग किसी मायने में कम नहीं है। हर तरफ हाहाकार, भूखमरी, पलायन, बेरोजगारी, मंदी, उन्माद आदि के कारण लोग भयभीत है। इस बीमारी का अभी का कोई इलाज न होने के कारण भी लोग परेशान और भयभीत है। कोविड-१९ का अभी तक शायद बचाव ही इलाज है, इसीलिये सरकार इसे गंभीरता से ले रही है। इस लाकडाउन के बाद का ख्याल आते ही मन सिहर उठता है। हर तरफ बेरोजगारी, उद्योग धंधों का बंद होना, नौकरियों का न होना, कुटीर उद्योगों के साथ बड़े उद्योगा का भी नष्टï होना, सभी प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों की छटनी, इस लाकडाउन में हजारों लोग जो अपनी जान गवां चुके होगे उनके परिजनों का दर्द, अनाथों का दर्द आदि मुददों को लेकर भारत को एक बार फिर से नयी शुरुआत करनी होगी।
शायद इसी का नाम जिन्दगी है-अपना सब कुछ हार कर सर पर गठरी लिये हजारों किलोमीटर अपने परिवार संग पैदल ही घर वापसी का साहस जुटाए लोग इस भीषण गर्मी मे चले जा रहे है। अपनों से मिलने की आस में उसे अपने पैरों के छाले और दर्द का एहसान नहीं होता है। जहां जो कुछ मिला खाया नहीं तो बिना खाये ही अपने रास्ते पर चलना करोड़ो लोगों की घर वापसी का मकसद हो गया है। हां इस दर्द भरे सफर में कुछ अपनी जिन्दगी की जंग भी हार रहे है, लेकिन इनके हौसलों के आगे शायद रास्तें में मिलने वाली परेशानियां भी बौनी साबित हो रही है। सरकारी उपेक्षा, सीमाओं पर उपेक्षा, पुलिस के डंडे, कोरोना का डर, जेब में पैसे न होना आदि परेशानियों से पार पाते इन प्रवासी श्रमिकों का दर्द देखा नही जाता है। रास्तें में कुछ हमदर्द इन्हें सहायता जरुर करते है, ताकि यह अपने घरों तक पहुंंच सके।
लाकडाउन के बाद जब परिस्थितियां सामान्य हो जायेगी, लोग अपने कारोबार को फिर से शुरु करना चाहेगे तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या, पैसे और लेबर की होगी। वहीं लेबर जिसे लाकडाउन में कारोबारियों ने इतना उपेक्षित किया की वह अपना सब कुछ उस शहर राज्य को छोडकर पैदल ही अपने गांव, अपनों के पास टोलियां बनाकर निकल पड़ा। जिन प्रवासी मजदूरों को व्यापारी जगत एक माह का भोजन भी न दे पाया जिसने उनके कारोबार को इतनी ऊचांइयों तक पहुंचाया, अब वह इन मजदूरों के बिना चाह कर भी पहले जैसा न तो उत्पादन कर पायेगे न तो उस माल के लिये बाजार तलाश पायेगे। इस लाकडाउन के बाद हजारो कारोबारी कर्ज में डूबक र अपने सब कुछ गवां देगें। हजारों कारोबी ऐसे है जिन्होने अपने मजदूरों का करोडों रुपये का वेतन यह कह कर नहीं दिया की काम बंद है, उन कारोबारियों को इन बेसहारों की हाय के साथ अपना करोबार शुरु करने में दोबारा लालेलग जायेगें। इसका एक दूसरा भयावाह चेहरा महंगाई के रुप में लोगों को झेलना होगा।
जिस भयावह स्थिति का आपने वर्णन किया है। स्थिति उससे भी भयावह हो सकती है।
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