पूर्वी उत्तर प्रदेश का दर्द समझिये साहब
उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्व में स्थित अवधी और भोजपुरी भाषा-भाषी ज़िले पूर्वी उत्तर प्रदेश कहलाता हैं। यह हिन्दू धर्म के भगवान् श्रीराम, जैन धर्म के संस्थापक भगवान् आदिनाथ और बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान् बुद्ध की जन्म स्थली तथा इस्लाम धर्म के प्रथम पैगम्बर हज़रत आदम के पुत्र हज़रत शीस की निर्वाण स्थली है हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महाराज मनु के वंशज इच्छवाकु ने सृष्टि का पहला शहर अयोध्या और प्रथम राज्य कोसल की स्थापना किया। यही कोसल कालान्तर में अवध बना और वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश कहलाता है। धर्मों का केंद्र होना ही कोसल राज्य के वैभव को समझने के लिए पर्याप्त है। क्योंकि जब पेट भरा होता है तब मस्तिष्क का रूझान आध्यात्मिकता की तरफ बढ़ता है।
प्रकृति ने अवध को भाभर, तराई, उपजाऊ मैदान और पठार जैसे भोगौलिक क्षेत्र के साथ सभी छह मौसम दिए। इस छोटे से इलाके में सर्वाधिक नदियाँ बहती हैं। इस राज्य में पानी, अनाज, फल-फूल, वनसम्पदा और खनिज सम्पदा प्रचुर मात्रा में मौजूद थें। बड़ी जनसँख्या कृषि करती थी। उस समय किताबी इंजीनियरिंग की अपेक्षा पेशेगत पारिवारिक इंजीनियर हुआ करते थे। इनके द्वारा परिवार या छोटे उधोग स्तर पर खाने की वस्तुओं का उत्पादन, पशुपालन, निर्माण कार्य, शिल्प, हस्तशिल्प, वास्तुशिल्प, धातु कार्य, लकड़ी का काम, बुनाई, रंगाई, सिलाई, गहना निर्माण, धातु तथा बर्तन, चमड़े के कार्य आदि किये जाते थें। हर हाथों में काम था। अधिकतर लोग आत्मनिर्भर थें। प्रकृति की उपासना होती थी। संयुक्त परिवार था और लोगों में अंतरंग संबंध थे। मुगलकाल में अवध के सूबेदार सआदत खां प्रथम ने प्राचीन कोसल राज्य क़े क्षेत्र को संगठित कर स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना किया।
उस समय पूरी दुनिया यूरोप की औधोगिक क्रांति से उपजी गैर प्राकृतिक उत्पादन नीति, कथित विकास और उसको महिमा मंडन करने वाली शिक्षा पद्धति की चपेट में फंस चुकी थी। एक-एक करके भारतीय रियासतें इसका शिकार होती गयीं। अंग्रेज़ों ने कुटिल व्यापारिक नीतियों के तहत समृद्धशाली राज्य अवध के आस्तित्व को समाप्त करके संयुक्त प्रान्त नामक बेमेल और तर्कहीन राज्य का निर्माण किया।
देखते ही देखते अवध राज्य गरीबी, भुखमरी और अराजकता का शिकार हो गया। लाखों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत बाज़ारवाद के चंगुल में फँस गयी। दोहन के कारण प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने लगे। किसान बेरोज़गारी के शिकार होकर मजदूरी के लिए पलायन करने लगे। नैसर्गिक इंजिनीयरों को मोची, बढ़ई, लुहार, नाई, मिस्त्री कहकर अपमानित किया जाने लगा। उनके परंपरागत पेशे का औद्योगिककरण हो गया और वे बेरोज़गार हो गए। शिक्षा और छात्र व्यापारीकरण की कुटिल नीति के मकड़जाल में फंस गए। अंग्रेजों ने सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से समृद्धि एक राज्य को नष्ट करके उसके आस्तित्व को समाप्त कर दिया । अंग्रेज़ों की नीतियों का पालन करते हुए स्वतंत्र भारत की सरकार ने संयुक्त प्रांत को उत्तर प्रदेश नाम से स्थापित कर दिया ।
आठ प्रधानमंत्री और दस मुख्यमंत्री देने क़े बाद भी आज अवध क्षेत्र न्यूनतम साक्षरता वाले ज़िले, सर्वाधिक पिछड़े ज़िले और सबसे गंदे शहरों का कलंक ढ़ोने को बाध्य है। रोज़गार क़े न्यूनतम अवसर हैं और भीषण गरीबी है। इसी कारण इस क्षेत्र से बड़ी संख्या में पलायन हुआ। इन प्रवासी नागरिकों ने औधोगिक राज्यों में अपने श्रम क़े बल पर उनकी आर्थिक स्थिति मज़बूत की। उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलांगना और आंध्र प्रदेश क़े पुनर्निर्माण में भगीदारी की ।
आज पूरी दुनिया क़े साथ जब भारत भी कोरोना विषाणु जनित महामारी की चपेट में है तो लॉकडाउन क़े कारण ये कर्मवीर एक बार फिर से बेरोज़गारी का दंश झेल रहें हैं। इनका परिवार भूख से तड़फ रहा हैं और भविष्य अन्धकार में है। फिर भी कृतज्ञ और ईश्वर में आस्था वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश क़े लोगों को किसी से शिकायत नहीं हैं। इस विपत्ति को प्रारब्ध मानकर वे वापस अपने घर लौट जाना चाहतें हैं। बदले में उनका स्वागत पुलिस की लाठियों से हुआ। मीडिया क़े एक वर्ग ने उनको संप्रदाय विशेष का घोषित कर किसी बड़े षड्यंत्र की आशंका जाहिर कर दी। हज़ारों अवधवासी परिवार सहित दुश्वारियां झेलते हुए पैदल उसी आशियाने में वापस आ गये जहां से सुनहरे सपने लेकर निकले थे।
केंद्र और राज्य सरकारें बहुत ही सक्षम हैं और जनता का पूरा सहयोग हैं। ऐसे में इन प्रवासी कर्मवीरों को एक बार फिर से सुरक्षा का एहसास दिलाने की ज़रुरत हैं। निर्णय सरकार को करना हैं लेकिन रहने, खाना- पानी और दवा का प्रबंध तो करना ही पडेगा। याद रखना पडेगा की देश की अर्थव्यवस्था इन्हीं प्रवासी मज़दूरों क़े श्रम पर निर्भर करता हैं। इनके सहयोग क़े बिना अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार संभव नहीं होगा ।
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