पूर्वाचल की १३ सीटों पर अंतिम चरण में घमासान

हुजै़फा
लखनऊ। अब २०१९ का चुनाव अंतिम चरण पर आ पहुंचा है। अब तक हुए चुनाव से एक बात उभर कर सामने आ रही है कि किसी भी दल को स्पष्टï बहुमत नहीं मिल रहा, यानि जोड़-तोड़ की सरकार केन्द्र में बनने जा रही है। पूर्वांचल की 13 सीटों पर 19 मई को मतदान होना है और हर जगह गठबंधन के नाम की गूंज सुनाई पड़ रही है। वाराणसी से लेकर गाजीपुर, घोसी, देवरिया, गोरखपुर तक पूरा नजारा १४ से बिल्कुल अलग नजर आ रहा है। वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं वहीं गोरखपुर सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ मानी जाती है। लेकिन 19 का लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम गठबंधन के बीच हो रहा है। हर सीट पर गठबंधन उम्मीदवार भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे है। वैसे तो पूर्वांचल की हर सीट के वोटरों का अपना मिजाज है लेकिन बदले सियासी समीकरण बदलाव साफ  दिख रहा है। देश के सबसे बड़े सूबे के पूर्वांचल क्षेत्र ने जब-जब सियासी तस्वीर बदली है तब-तब राजनीतिक दल मजबूत रहे हैं। 14 में इसी पूर्वांचल ने भाजपा को एक बड़ी ताकत दी थी और इस बार वैसी स्थिति देखने को नहीं मिल रही है। हर सीट पर भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बाद यह कही जा रही है कि दलित, यादव, मुस्लिम एकजुट होकर गठबंधन के साथ खड़े है। गत चरणों में हुए मतदान में यह एकजुटता पश्चिम से लेकर पूरब तक दिखाई है। यही कारण है कि अब भाजपा अपने विरोधियों से बहुत सजग्र होकर प्रचार कर रही है। हर चरण के वोटिंग के ट्रेंड ने यह साफ  कर दिया कि केवल पूर्वांचल नहीं बल्कि देश के हर हिस्से में मोदी लहर का वह जुनून नहीं नजर आ रहा जैसा २०१४ में दिखाई दे रहा था। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अधिक आक्रामक दिख रही है तो केरल में वामदल। क्योंकि विपक्षी दलों को साफ  तौर पर अब भाजपा के गिरते जनाधार से जोश में है। अब सीधी लड़ाई मोदी बनाम अन्य सियासी दलों में हो रही हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि पूर्वांचल की जिन 13 सीटों पर मतदान होना है वहां की सियासी फिजा बिल्कुल ही अलग हो गई है। यहां अब जाति या धर्म का गठजोड़ होता दिख रहा है जो विकास पर भी बात कर रहा है। इसलिए बदलते माहौल में बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को लेकर ऊहापोंह में हैं। कोई साफ  नहीं बता पा रहा है कि गठबंधन के पक्ष में किस सीट पर माहौल है। लेकिन यह तो साफ है कि भाजपा को हर सीट पर पहले से अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। अंतिक चरण में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठïा दांव पर होने के साथ कई नेताओं पर हार के बादल भी मडंरा रहे है। गलत बयानबाजी और कोरी घोषणाओं से सभी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिये योजनाओं का भी बखान कर रहे है।

Comments

Popular posts from this blog

नए अल्ट्रा-हाई टैक्स की वजह से विदेशी अवैध ऑनलाइन गेम्स का रुख कर रहे भारतीय

फिक्की एफएलओ ने महिला उद्यमियों को सशक्त करने के लिए सिलीगुड़ी चैप्टर लांच

मुट्ठीभर बादाम से भारतीय परिवारों की प्रोटीन की आवश्यकता पूरी होती है -मास्टरशेफ विजेता पंकज भदौरिया