दशकों बाद भी घावों में टीस बाकी है
हुजैफ़़ा लखनऊ ---भारत-चीन सीमा पर आज भी वह युद्घ के भयानक लम्हें उन लोगो को याद है जिन्होंने इस लड़ाई को देखा और महसूस किया। आज सत्तावन साल बीत जाने के बाद भी हार के घावों में टीस है। सेना अपने उन जवानों को याद करती है जिन्होंने अभावों और कम संसाधनों के कारण अपनी जान गवांई। सत्तावन सालों में भी भारत ने इस हार से सबक नहीं लिया है। विकट मौसम में बिना साधनों के हमारे वीर सैनिकों ने भारत की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहूति दे दी। ऐसी सर्द हवाएं जिसमें लोगो को घर में रजाई मे भी सर्दी लगेे और ऐसा घटाटोप अंघेरा की अपने ही हाथ न दिखाई दे ऐसी भयानक सर्दी और पहाडी दुर्गम रास्तों पर चीन ने धोखे से भारत को १९६२ में १९-२० की रात भारत पर हमला किया। अरुणाचल और सिक्कीम में घमासान हुआ, चीन ने स्वंय ही १४ नबम्बर को युद्घ विराम किया। इस दौरान उसने भारत के अपने से सटे हुए इलाको पर अपना लाल पर्चम फहरा दिया जो आज भी लहरा रहा है। इस शिकस्त में कुमाडं रेजीमेंट के ११४ लड़ाके शहीद हुए थे। यह कटु सत्य है कि भारत ने हमे हमारी धरती पर बुरी तरह हराया और हमारी जमीन पर अपना कब्जा किया जिसमें से आज भी ...