बयानों में गुम हो गये बुनियादी मुद्दे


हुज़ैफ़ा

लखनऊ। भारत में कई लोकसभा चुनाव और विधान सभा चुनाव मुददों पर लडे गये। देश और प्रदेश में परिवर्तन भी हुआ किन्तु आज हमारे देश में अनगिनत समस्याओं के बावजदू दशकों से देश में मुद्दों रहित राजनीति हो रही है। बेवजह के बयानों पर बयानबाजी कर हमारे नेता लोकप्रिय बनने की हर संभव कोशिश करते देखे जा रहे है। आज भारत की आन्तरिक और वाहय सुरक्षा को खतरा है, हमारी सीमाएं सुरक्षित नहीं है। बाहरी घुसपैठ आये दिन देश की सीमाओं से हो रही है। क रोडों लोग बेराजगारी के कारण दर-दर भटक रहे है। देश के संसाधनों पर धीरे-धीरे कार्पोरेट जगत और विदेशी कंम्पनियों हावी हो रही है। भारत में शिक्षा का स्तर उठने के बावजूद आज विश्व स्तर पर काफी कम आंका जा रहा है। सरकारी शिक्षा का स्तर आज सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। सरकारी टीचर बनने के लिये हर कोई लालाइत रहता है कि स्कूल में पढ़ाओं चाहे न पढ़ाओं एक हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तो मिलेगा ही। बच्चों को स्कूल में शिक्षक मानको के अनुसार शिक्षा नहीं देते है। सामाजिक रुढिय़ा आज भी देश में बनी हुई है। महंगाई हर दिन बढ़ती ही जा रही है। अपना भला हो देशवासियों का भला हो चाहे न हो इस सोच ने देश में भ्रष्टïाचार को इतना बढ़ावा दिया कि योजनाओं का अरबों-खरबों का बजट भ्रष्टïाचार की भेट चढ़ता जा रहा है। योजनाओं पर मिलने वाली सब्सिडी बिचौलिये की भेट चढ़ जाती है। 

गरीबी, बेरोजगारी, मंगाई , कानून व्यवस्था और शिक्षा समानता को अपना चुनावी मुद्दा बनाने वाली पार्टिंयां भी अब राम-रहीम, जाति धर्म और साम्प्रदायिकता की राजनीति कर अपने कामों और जिम्मेदारियों से मुहं मोड़ रही है। पार्टियोंं की इस बेरुखी के कारण ही भारत की राजनीतिक दिशा और दशा कार्पोरेट घराने और विदेशी कम्पनियां तय कर रही है। जिनसे इनका स्वार्थ सिद्घ हो सके। देशवासियों और देश की समस्याओं के मुद्दों पर आज कोई भी पार्टी अपना रुख खुल कर नहीं रख रही है। क्योकि उसे मालूम है कि सत्ता में आकर उसे दूसरों के इशारों पर ही शासन करना है। इसलिये आज सभी पाटिंयां सिर्फ बयानों की राजनीति और दूसरों की कमियों को गिनाकर अपनी कमियां छुपाने की जुगत में लगी है। कोई लोकतंत्र में उत्तराधिकारी घोषित करने तो कोई अपनी पुराने गुनाहों को नजरअंदाज कर देश के  उच्च शिखर पर पहुंचना चाह रहा है। कुछ छोटे दल यह सोचकर खुश हो रहे है कि हमारे बिना किसी को सत्ता नहीं मिलेगी अगर ऐसा मौका आया तो हम अपने, अपनों और अपनी पार्टियों के लिये क्या-क्या मांग रख सकते है, का खाका तैयार कर मुगेंरी लाल के हसीन सपने संयोज जा रहे है। बयानों से पार्टियां एक-दूसरे को जवाब दे रही है। यह पार्टियां काम से जवाब नहीं देना चाह रही है। बातों बयानों को कुछ दिनों में हर कोई भूल जायेगा या भुला दिया जायेगी। देश की जनता आज भी अपने बुनियादी जरुरतों के बिना ही जीवन यापन करने को मजबूर है। उसे आज भी उस पल का इंजतार है जब कोई उनकी परेशानियों को दूर करे और उन्हें जीवन का मूल अधिकार प्रदान करें। 

शायद आज से दशकों पहले जब देश गुलाम था तो देश को आजादी दिलाने वाले लोगों ने ऐसा नहीं सोचा होगा कि आजादी के बाद हमारे नेता देश का इस तरह से शोषण कर देशवासियों को जन सुविधाओ से वंचित रखेगे। हमारे आजादी के दीवानों ने तो इसके विपरीत कुछ ऐसा ही सोचा होगा कि देश आजाद होगा तो हमारी परेशानियों से निजात मिलेगी, हम इस तरह अपने सपनों का भारत बनायेगे, हम अपने परिवार को आजादी की खुशबुओं और हवाओं का तोहफा देगें। भारत का हर नागरिक अंग्रेजो के चुंगल उनके जुल्मों से मुक्त होगा। शायद यहीँ सपना हमारे देश के उन आजादी के दीवानों ने देखा होगा जिन्होने देश के भविष्य को सुधारने और उसे आजाद दिलाने के लिये अपने वर्तमान की फ्रिकर नहीं की। अपने तन और मन पर यातनाओं और परेशानियों के शूल हंसते-हंसते स्वीकार कर लिये कि हमारा अपना देश आजाद होगा। भारत तो आजाद हो गया किन्तु आज देश के लोग अपने ही लोगों द्वारा गुलाम कर लिये गये। हर चुनाव में तरह-तरह के बादे हमारी पार्टियां और उनके नुमांइंदे करते है। उन वादों को को सच करने के लिये हर संभव प्रयास का वादा करते किन्तु चुनाव खत्म हो जाने और मतलब निकल जाने के बाद यह जन सेवक खुद को किसी तानाशाह राजा से कम नहीं समझते है। जिस आम आदमी के वोट से वह खास बनते उससे मिलने के लिये उनके पास समय ही नहीं होता है। लाखों रुपये अपने ऊपर खर्च करते, क्षेत्र और क्षेत्रवासियों को भूल जाते है। अगर हमारे जन सेवक स्वयं को जन सेवक ही समझते तो शायद उन्हेेें हर चुनाव में अपना खिसियाना चेहरा लेकर जनता के सामने दोबारा झूठे वादों के साथ जाना नहीं पड़ता, अपनी मौजूदगी क्षेत्र में दर्ज नहीं करनी पडती, जनता उन्हें उनके कामों पर अपने आप ही चुनाव जिताकर अपना प्रतिनिधि फिर से चुन लेती जैसा की कुछ नेताओं के साथ होता है।   

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